Detailed Notes on Shodashi
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चत्वारिंशत्त्रिकोणे चतुरधिकसमे चक्रराजे लसन्तीं
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥९॥
Each fight that Tripura Sundari fought can be a testomony to her could and the protective mother nature from the divine feminine. Her legends keep on to encourage devotion and are integral for the cultural and spiritual tapestry of Hinduism.
The underground cavern contains a dome significant over, and hardly obvious. Voices echo beautifully off the ancient stone on the walls. Devi sits inside a pool of holy spring drinking water which has a Cover over the top. A pujari guides devotees via the process of shelling out homage and acquiring darshan at this most sacred of tantric peethams.
देवीं मन्त्रमयीं नौमि मातृकापीठरूपिणीम् ॥१॥
उत्तीर्णाख्याभिरुपास्य पाति शुभदे सर्वार्थ-सिद्धि-प्रदे ।
यस्याः विश्वं समस्तं बहुतरविततं जायते कुण्डलिन्याः ।
Goddess Shodashi has a third eye within the forehead. She is clad in pink costume and richly bejeweled. She sits on a lotus seat laid on the golden throne. She is revealed with 4 arms wherein she retains five arrows of bouquets, a noose, a goad and sugarcane being a bow.
भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।
She's also called Tripura for the reason that all her hymns and mantras have three clusters of letters. Bhagwan Shiv is thought to be her consort.
देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥११॥
Goddess Shodashi is also referred to as Lalita and Rajarajeshwari which suggests "the one particular who performs" and "queen of queens" respectively.
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय more info हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।